![]() |
अद्वैतवाद इस सम्बन्ध में जो विचार व्यक्त करता है मैं उस विचार से बहुत हद तक सहमत हूँ | उनके अनुसार कण-कण में ब्रह्म बसते हैं और हर कण ब्रह्म हैं , सबका अपना कालचक्र है और सब उस परिपाटी में निरवरत अग्रसर हैं | उस कण-कण से निर्मित समस्त निर्जीव-सजीव चक्रों में ब्रह्म विराजमान हैं | फिर चाहे वो जल,अग्नि,वायु,सूर्य,चन्द्र हो या जीव-जन्तु ,वृक्ष | मनुष्य में भी उस ब्रह्म का निवास होता है लेकिन वो उस कण-कण में व्याप्त ब्रह्म को कपोल -कल्पनाओं में खोजता है और नित्य नये कर्मकाण्डों से उसे पाना चाहता है | नित्य नए स्वाँग रचता है और भाँति -भाँति के आडम्बर करता है किन्तु वह अपने भीतर उसे नहीं खोजता | वह भ्रम में जीता है और भ्रम में ही मर जाता है |
सम्पूर्ण जगत आचमन-नियमन के फेर में पड़े रहते हैं और उस सर्वथा सत्य से विमुख हमेशा व्यथित रहते है | हमारे महापुरुषों ने समय -समय पर इस फेर से निकलने के लिये मूलमंत्र दिये , जिसमे एक सर्वाधिक प्रचलित अहं ब्रह्मस्मि है | जिसमे हम अपने भीतर उस सत्य उस शक्ति को अनुभव करे जो हर कण में व्याप्त है |इसी सत्य की प्राप्ति से असहाय में ऊर्जा का संचार होता है और निरुत्तरित को अपने प्रश्नो का उत्तर प्राप्त होता है तथा उसकी सुप्त हो चुकी आत्मा में प्रफुल्ल्ता का उद्गगम होता है |
इस ब्रह्म रूपी शक्ति के प्रादुर्भाव से मनुष्य में एक नवीन द्रष्टि जाग्रत होती है और वो निश्छल भाव से समान रूप से हर मनुष्य हर कण में उस ब्रह्म के दर्शन करता है | उसके लिए हर कोई एक समान हो जाता है और वो सुख हो या दुःख , अमीरी हो या गरीबी हर पल हर क्षण में समान आदर्शपूर्वक व्यवहार करता है | उसके लिए हर परिस्तिथि उसकी धीरता , उसकी सुदृढ़ता और ब्रह्म तक पहुँचने का उसका मार्ग प्रशस्त करती है | अब वो चिंता और चिता से ऊपर उठ कर चिंतन करने की अवस्था प्राप्त कर लेता है |
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.